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सिद्धार्थनगर जिले में अंतिम समय तक एक-एक वोट सहेजने में जुटे रहे प्रत्याशी

पिछले चुनाव में जीत दर्ज करने वाली भाजपा ने जीत दोहराने के लिए पूरा जोर लगाया है तो वहीं विपक्षी दल सपा, बसपा, कांग्रेस, आजाद समाज पार्टी के साथ निर्दल प्रत्याशी पूरी दमदारी से चुनाव मैदान में जमे रहे। दलीय प्रत्याशी, अपनी पार्टी के वोट बैंक के साथ जातीय समीकरण सेट कर चुनाव अभियान में लगे रहे तो निर्दल प्रत्याशी सभी समुदाय के वोटों को अपने पाले में लाने के मुहिम के साथ जातीय गणित बैठाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

सिद्धार्थनगर नगर पालिका सिद्धार्थनगर में मतदान के लिए बुधवार को पोलिंग पार्टियां रवाना हो गईं। बृहस्पतिवार को सुबह सात बजे से मतदान शुरू होगा लेकिन आखिरी रात सभी प्रत्याशियों के लिए बहुत भारी दिखी। अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरे 14 दावेदारों के बीच, 59473 मतदाताओं वाली नगर पालिका में अंतिम समय तक एक-एक वोट के लिए मारा-मारी मची रही।

पिछले चुनाव में जीत दर्ज करने वाली भाजपा ने जीत दोहराने के लिए पूरा जोर लगाया है तो वहीं विपक्षी दल सपा, बसपा, कांग्रेस, आजाद समाज पार्टी के साथ निर्दल प्रत्याशी पूरी दमदारी से चुनाव मैदान में जमे रहे। दलीय प्रत्याशी, अपनी पार्टी के वोट बैंक के साथ जातीय समीकरण सेट कर चुनाव अभियान में लगे रहे तो निर्दल प्रत्याशी सभी समुदाय के वोटों को अपने पाले में लाने के मुहिम के साथ जातीय गणित बैठाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। हर कोई अपनी जीत मानकर पूरी दमदारी से चुनावी मैदान में डटा दिखा।

सबके अपने वायदे हैं, शहर की सूरत बदलने का घोषणा पत्र है और ईमानदार छवि दिखाने की होड़ मची है। कुल मिलाकर कहा जाए तो वोटरों को रिझाने के लिए सारे हथकंडे अपनाए गए। प्रत्याशियों की इन सारी कवायद के बीच आम मतदाताओं की खामोशी ने राजनीति के जानकारों के दिमाग की बत्ती गुल कर दी है। उनके लिए यह आंकलन करना बेहद मुश्किल साबित हो रहा कि आखिर इस बार के चुनाव में किन प्रत्याशियों को सीधी लड़ाई में माना जाए और किसे लड़ाई से बाहर माना जाए। जातीय आंकड़ों की बात करें तो नगर पालिका क्षेत्र में 30 प्रतिशत के लगभग ब्राह्मण मतदाता हैं। इसके बाद नंबर आता है पिछड़ी जाति के मतदाताओं का है जो करीब 25 प्रतिशत के आसपास हैं। अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बात करें तो वह लगभग 11 प्रतिशत हैं जबकि मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत के आसपास है।

बाकी हिस्से में व्यापारी व अन्य सवर्ण जातियां हैं। सामान्य सीट होने के बावजूद सत्ताधारी भाजपा व मुख्य विपक्षी सपा ने पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा जताते हुए अपने परंपरागत वोटों के साथ पिछड़ी जाति के मतों को साधने की मुहिम पर काम किया है। तो वहीं बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारकर पार्टी के वोट बैंक के साथ ब्राह्मण मतों को अपने पाले में लाने लिए जोर आजमाइश करती नजर आई।

कांग्रेस ने सवर्ण जाति के प्रत्याशी पर दांव लगाकर परंपरागत वोटों के साथ सभी जातीय पैठ बनाने में बनाने की रणनीति बनाई। इन सारे प्रत्याशियों के बीच आजाद समाज पार्टी ने मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाया। पार्टी, दलित वोटों के साथ मुस्लिम वोटों को एकजुट करने की खास रणनीति के साथ अन्य जातियों का वोट भी अपने पाले में लाने के लिए पूरा दम लगा रही है। वहीं इन राजनीतिक पार्टियों के अलावा पिछले चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले नेता, इस बार टिकट कटने पर निर्दल प्रत्याशी के रूप में पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहे हैं।

एक अन्य भाजपा नेता, टिकट न मिलने पर अपनी पत्नी को चुनावी मैदान में उतार कर उलट-फेर करने लिए पूरी जी जान से जुटे हैं। वह सजातीय वोटों को रिझाने के साथ सभी वर्ग के मतों को अपने पाले में लाने की योजना पर काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो नगर पालिका सिद्धार्थनगर का चुनाव इस बार पूरी तरह से उलझा हुआ है। दलीय प्रत्याशियों के साथ निर्दलीय प्रत्याशियों के भी दमदारी से चुनाव लड़ने से इस बार सियासी समीकरण का आंकलन करना राजनीतिक पंडितों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।