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Congress loses Pondicherry, understand how celebration turns into increasingly weak within the states | पुदुचेरी में सरकार गिरने से कांग्रेस की राज्यों पर सियासी पकड़ और घटी
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Congress loses Pondicherry, understand how celebration turns into increasingly weak within the states | पुदुचेरी में सरकार गिरने से कांग्रेस की राज्यों पर सियासी पकड़ और घटी

February 22, 2021


नई दिल्ली: पुडुचेरी (Pondicherry) में सोमवार को सरकार गिर गई और इसी के साथ ही कांग्रेस (Congress) की राज्यों पर पकड़ भी सिकुड़ती नजर आ रही है. कांग्रेस अपने दम पर अब सिर्फ पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता में बनी हुई है. हालांकि बीते हफ्ते पंजाब में शहरी स्थानीय निकाय के चुनावों (City native physique elections) में मिली जीत से पार्टी को थोड़ी राहत मिली है लेकिन इसके अलावा कांग्रेस को चुनावी चुनौतियां काफी समय से घेरे हुए हैं. 

महाराष्ट्र में शिवसेना और राकांपा तथा झारखंड में झामूमो के साथ हालांकि कांग्रेस सत्ता में है लेकिन इन दोनों राज्यों में भी उसकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं है. 

MP में कांग्रेस को ले डूबी गुटबाजी

कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से कमोबेश चुनावों में लगभग लगातार निराशाजनक प्रदर्शन कर रही है. पिछले साल मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के साथ ही पार्टी इस राज्य में सत्ता से हाथ धो बैठी. यहां भाजपा ने सरकार बना ली. आंतरिक गुटबाजी कांग्रेस को मध्य प्रदेश में महंगी पड़ी और सिंधिया के पार्टी छोड़ने से वहां कमल नाथ सरकार गिर गई.

दिल्ली और बिहार में शर्मनाक प्रदर्शन

पिछले साल मार्च में मध्य प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को शर्मनाक चुनावी हार का सामना करना पड़ा. दिल्ली में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया और 70 सीटों में से 67 पर उसके उम्मीदवारों को जमानत जब्त हो गई, वहीं बिहार में ‘महागठबंधन’ के घटक के तौर पर उस पर राजद को पीछे खींचने का दोष आया. बिहार में वाम दलों का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर था जबकि राजद को सबसे ज्यादा सीटें मिली. भाजपा को वहां चुनावी फायदा हुआ.

ये भी पढ़ें- कोरोना के बढ़ते मामलों के बाद केंद्र सरकार अलर्ट, अमित शाह ने अफसरों को दिए ये निर्देश

राजस्थान में गिरते-गिरते बची कांग्रेस की सरकार

इससे पहले राजस्थान में पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बगावती तेवरों के कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार के लगभग गिरने की नौबत आ गई थी हालांकि आखिरी मौके पर मुख्यमंत्री ने अपनी रणनीति से संभावित विद्रोह को टाल कर अपनी सरकार बचा ली. राजस्थान में कांग्रेस की प्रदेश इकाई में अब भी खींचतान पूरी तरह खत्म हो गई हो यह नहीं कहा जा सकता और पायलट और गहलोत के बीच कहा जाता है कि अब भी वर्चस्व को लेकर तनातनी बरकरार है.

कांग्रेस के लिए राह नहीं आसान

हार और निराशा के दौर के बाद अब कांग्रेस को तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम और केरल में होने वाले विधानसभा चुनावों से उम्मीद है और वह यहां अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश करेगी हालांकि ये राह भी उतनी आसान दिख नहीं रही. इन राज्यों में जून से पहले चुनाव होने हैं. इन सभी चुनावी राज्यों में भाजपा की आक्रामक रणनीति और बंगाल में एआईएमआईएम की सियासी दस्तक से पूर्वी राज्य में कांग्रेस-वाम की संभावनाओं को चुनौती मिलेगी. वहीं असम में निवर्तमान भाजपा की मौजूदगी में मुकाबला सख्त होने की उम्मीद है. भाजपा को यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई कई विकास परियोजनाओं से काफी उम्मीद है.

क्या कहता है केरल का सियासी गणित

केरल में चुनाव में सरकार बदलने का इतिहास रहा है लेकिन इसके बावजूद यहां कांग्रेस की राह में कड़ी चुनौती लग रही है. भाजपा में ई श्रीधरन के शामिल होने के केरल के चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है. पुडुचेरी में परंपरागत रूप से मजबूत रही कांग्रेस को वापसी की उम्मीद है हालांकि आंकड़े उसके पक्ष में गवाही नहीं दे रहे. यहां चुनावों से पहले कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे की झड़ी से पार्टी पर दबाव जरूर होगा, वहीं इन सबके बीच तमिलनाडु में पार्टी को द्रमुक के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है.

पार्टी में अदरुनी कलह 

कांग्रेस के अंदरुनी लोग आलाकमान के कमजोर पड़ती पकड़ और गांधी परिवार के वोट बटोरने की अक्षमता को पार्टी के इस खराब प्रदर्शन के लिए दोष देते हैं. गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं समेत 23 नेताओं का समूह कांग्रेस अध्यक्ष को यथा स्थिति के खिलाफ अगस्त से चेता रहा है लेकिन इसका कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा. सोनिया गांधी की तबीयत ठीक न होने और संपर्क में न रहने तथा राहुल गांधी के पार्टी प्रमुख का पद ग्रहण करने में संकोच दिखाने के कारण पार्टी नेतृत्व अस्थिर बना हुआ है.

पार्टी के 23 नेताओं के समूह की आंतरिक चुनावों की मांग भी परवान चढ़ती नहीं दिख रही. पार्टी के वरिष्ठों का मानना है कि पार्टी को अब आगे आकर नेतृत्व करना चाहिए और उन्हें उम्मीद है कि जून में नए अध्यक्ष के पदभार संभालने के साथ ही यह हो सकता है.





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