सिद्धार्थनगर। चूहे बंधों को खोखला कर रहे हैं तो रैट होल भरने में अधिकारी रुचि नहीं ले रहे हैं। कुछ ऐसी ही तस्वीर जिले की विभिन्न नदियों के तटों पर बने असोगवा मदरहना, ककरही गोनहा, सोनखर हाटा, बांसी पनघटिया, डुमरियागंज बांसी बांध पर देखने को मिल रही है। समय से पहले बंधों पर सुरक्षात्मक कार्यों में अधिकारी ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं। यही कारण है कि कमजोर बंधों को देखकर आसपास के लोग सहमे हैं कि पानी का दबाव बढ़ने पर तबाही न बढ़ जाए।
बाढ़ बचाव का हाल यह है कि जिम्मेदार इस अतिसंवेदनशील बंधे की मरम्मत कराने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। इससे तटबंध के किनारे बसे ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। लोगों का कहना है कि सिंचाई विभाग के अधिकारी समय रहते हुए नहीं चेते तो जर्जर बंधा नदी का जलस्तर बढ़ने पर दबाव नहीं झेल पाएंगे।
जिले के बंधों की हालत इतनी खतरनाक है कि उससे गुजरने वाले वाहन चालकों को भी खतरा है। इसके बावजूद सिंचाई विभाग के जिम्मेदार जर्जर बंधे की मरम्मत कराने में लापरवाही बरत रहे हैं। डुमरियागंज बांसी बंधे की सतह पर जगह-जगह चूहों ने बिल बना रखा है। बंधे पर खड़ंजा जगह-जगह टूटकर क्षतिग्रस्त हो गया है।
उसका के छितरापार गांव के पास कुछ लोगों ने उसका-लखनापार बांध के आधे हिस्से को काटकर रास्ता बना लिया है। बांध पर दो माह पूर्व बनाए गए खड़ंजा का किनारा नहीं बनाए जाने से यह अभी क्षतिग्रस्त से होने लगा है। ग्रामीणों का आरोप है कि इसमें मानक के अनुसार कार्य नहीं कराया गया है। हथिवड़ताल गांव के पास नदी का पानी बढ़ने पर बंधे के ऊपर चढ़ जाता है। यहां तक बाढ़ के पानी से तिवारीडीह समेत आसपास के टोले डूबे रहते हैं। पानी के दबाव से बांध टूटने के डर से आसपास के महुरैया, तिघरा, कुआहाटा, चुरिहारी गांव के लोग रतजगा कर बांध की रखवाली करते है।
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नाकाफी है बांधों पर मरम्मत कार्य, सता रहा तबाही का डर
सिद्धार्थनगर। राप्ती नदी के दक्षिणी पश्चिमी तट पर स्थित डुमरियागंज बांसी बांध है जिसमे सैकड़ों रैनकट व रैट होल है जिन्हें भरा नहीं गया है। जबकि इसी बांध पर सिचाई निर्माण खंड का सब डिविजन कार्यालय है। ऐसा ही हाल राप्ती व बूढ़ी राप्ती नदी के तट पर बने सभी बांध का है जो जर्जर है। इन बांधो के पर रख रखाव का कोई काम नहीं हुआ है जिससे नदी के तट पर बसे ग्रामीण चिंतित हैं। इनका मानना है कि यदि नदियों में उफान आया तो यह बांध पानी का दबाव नहीं झेल पाएंगे। जबकि शासन का निर्देश था कि 15 जून से पहले सभी बांधों के रखरखाव व मरम्मत का कार्य पूरा कर लिया जाए। इसके बाद भी जिम्मेदार विभाग काफी लापरवाह है। लगातार तीन वर्षों से बूढ़ी राप्ती नदी के दक्षिणी छोर पर स्थित असोगवा नगवा बांध के कटने से हुई भीषण तबाही को लोग अभी भूल नहीं पाए हैं। यही हाल बूढ़ी राप्ती व राप्ती नदी के तट पर बने असोगवा मदरहना, ककरही गोनहा, सोनखर हाटा, बांसी पनघटिया, बांसी डुमरियागंज ,डुमरियागंज बांसी बांध का है सभी बांध जर्जर हैं। पिछले साल आई बाढ़ में सभी बांधों में दर्जनों स्थान पर रिसाव हो रहा था जिसे रोकने में विभागीय अभियंताओं, ठेकेदारों व ग्रामीणों को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। इसके बाद भी असोगवा नगवा बांध डढ़िया गांव के पास टूट गया जिससे क्षेत्र में भारी तबाही हुई। इस बाढ़ में गांव के सात रिहायशी मकान बह गए तथा काफी फसल बर्बाद हुई थी। हलांकि मैरुंड गांव के अलावा सौ से अधिक ऐसे गांव थे जो मैरुंड नहीं थे परंतु इन गांव की पूरी फसल बाढ़ में बर्बाद हो गयी थी। यह सब तबाही का मंजर देख चुके ग्रामीण काफी भयभीत हैं। नदी के तट पर बसे इंद्रजीत, रामदास, इसहाक, रमजान, दिलीप तिवारी, भगवान दास, अर्जुन, निलेश निषाद का कहना है कि जगह-जगह चूहे व साही आदि जानवरों ने बांध को जर्जर कर दिया है कही-कही बांध में रैन कट भी हैं। इसके बावजूद बांध के रख रखाव का कोई काम नहीं किया गया जो चिंता का विषय है। ग्रामीणों का कहना है कि कुछ बांध पर कहीं-कहीं मामूली मिट्टी डाली गई है जो नाकाफी है।
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डीएम के निर्देश पर हो रहा बचाव कार्य
उसका लखनापार बांध पर छितरापार गांव के पास बूढ़ी राप्ती नदी के कटान स्थल पर डीएम संजीव रंजन के निर्देश पर ठोकर लगाया जा रहा है। ग्रामीणों ने डीएम से यहां बचाव कार्य की गुहार लगाई थी, जिस पर डीएम विभाग को बचाव कार्य कराने का निर्देश दिया था। ग्रामीणों का कहना है कि नदी की कटान से अब तक कई घर और खेत नदी में विलीन हो चुके हैं। यहां विभाग की तरफ से बोरी-ईंट के टुकड़े डालकर बचाव कार्य कराया जा रहा है।
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जिले में संवेदनशील 60 कटान स्थल
जिले में राप्ती, बूढ़ी राप्ती, कूड़ा, घोघी, बाणगंगा आदि नदियों के किनारे 60 से अधिक संवेदनशील कटान स्थल है। इनमें बूढ़ी राप्ती नदी के किनारे बंजरहा, डेंगहर, ककरही, नरकटहा, सतवाड़ी, तनेजवा, भूतहिया कटान प्रमुख है। जबकि राप्ती नदी किनारे सिंगारजोत, बेतनार, कूड़ा नदी किनारे इमिलिहा, महुआ, सेमरा, महथावल और बानगंगा नदी किनारे बरैनिया आदि कटान स्थल हैं। इन कटान स्थलों पर नदी का जलस्तर बढ़ने और घटने के दौरान तेज कटान होती है।
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454 किमी बांध कई जगह जर्जर
जिले की विभिन्न नदियों किनारे बने 454 किमी लंबे 39 बांध कई स्थानों पर जर्जर हैं। इसमें बांसी-डुमरियागंज बांध में अभी कई स्थानों पर गैप है। जबकि भोजपुर-शाहपुर, छगड़िहवा-सोनबरसा, फत्तेपुर- खजुरडाड-अजगर बांध भी मरम्मत के अभाव में कमजोर हो चुका है। ग्रामीण जगदीश, रामबचन का कहना है कि जब भी नदी का जलस्तर बढ़ता है तो उन्हें बांधों के टूटने का डर सताने लगता है। बीते दिनों में बाढ़ की तबाही याद कर वह अभी से सहमे हुए हैं।