सिद्धार्थनगर। निकाय चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने के आखिरी दिन सोमवार को भाजपा के बागियों ने नई राह चुन ली। नगर पालिका सिद्धार्थनगर में सत्ताधारी दल के टिकट को लेकर सबसे ज्यादा खींचतान देखी गई। जिसके चलते पार्टी आलाकमान को नामो की घोषणा करने में पसीना छूट गया और प्रत्याशियों के नाम की सूची रविवार की शाम को जारी कर पाई।
नामों की घोषणा के बाद टिकट की उम्मीद पाले कई दावेदारों ने बगावती तेवर दिखाते हुए दूसरे दलों का दामन थामने के साथ निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में ताल ठोक दिया है। भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट मानी जाने वाली नगर पालिका सिद्धार्थनगर में शुरुआती दौर से ही टिकट को लेकर दावेदारों के बीच मारा मारी देखी गई।
निवर्तमान अध्यक्ष श्याम बिहारी जायसवाल के अलावा भाजपा जिलाध्यक्ष गोविंद माधव, एसपी अग्रवाल, राजू सिंह, राकेश दत्त त्रिपाठी के अलावा सचींद्रनाथ उर्फ गुड्डू त्रिपाठी, बबलू श्रीवास्तव और मणिकांत शुक्ला टिकट की रेस में शामिल थे। आचार संहिता लगने से पहले उक्त सभी दावेदारों के बैनर-पोस्टर व होर्डिंग शहर के हर प्रमुख जगहों पर देखे गए। इतना ही नहीं सभी दावेदार, प्रचार वाहनों के जरिए व सीधे वोटरों से संपर्क कर प्रचार-प्रसार कर वोट मांगते भी नजर आए। इन दावेदारों के बीच टिकट को लेकर असली रस्साकशी आचार संहिता लगने के बाद मची और टिकट की आस में सभी ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक डेरा डाले रखा। इस दौरान पार्टी नेताओं से लेकर आम मतदाताओं में प्रत्याशी के नाम को लेकर चर्चाओं का दौर बदस्तूर जारी है। आखिरकार लंबे समय से चल रही कयासबाजियों पर रविवार की शाम को विराम लग गया और पार्टी ने जिलाध्यक्ष गोविंद माधव के नाम पर मुहर लगा दी। हालांकि अनारक्षित सीट में पिछड़ी जाति के प्रत्याशी को टिकट दिए जाने का निर्णय राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय जरूर बना हुआ है।
सूची जारी होने के बाद निवर्तमान अध्यक्ष श्याम बिहारी जायसवाल, राजू सिंह, मणिकांत शुक्ला ने बगावती रुख दिखाते हुए निर्दल प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल कर दिया। जबकि राकेश दत्त त्रिपाठी, बसपा का दामन थाम कर चुनावी मैदान में आ गए। वहीं बाकी दावेदारों ने किसी अन्य दलों से या निर्दल प्रत्याशी के रूप में पर्चा तो दाखिल नहीं किया है लेकिन वह भाजपा के घोषित प्रत्याशी गोविंद माधव के नामांकन के समय कहीं नजर नहीं आए। जानकारों की माने तो नामांकन के समय अन्य दावेदारों की गैरमौजूदगी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। पार्टी की प्रतिष्ठा से जुड़ी इस सीट पर बागियों ने ताल ठोक कर भाजपा की पेसानी पर बल जरूर डाल दिया है। ऐसे में पार्टी पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं के साथ सांसद व स्थानीय विधायक को यह सीट भाजपा के खाते में डालने के लिए कई चुनौतियों से पार पाना होगा। फिलहाल इन सारे चुनावी चक्रव्यूह के बीच देखना दिलचस्प होगा कि अबकी बार भाजपा, इस सीट पर जीत बरकरार रख अपनी साख बचा पाने में सफल होती है या नहीं।