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Siddharthnagar News: जिले में नहीं करते बचाव के इंतजाम… बाढ़ आने पर बाहर से मंगाते नाव

सिद्धार्थनगर। बाढ़ बचाव की तैयारियों में लगा प्रशासन हर वर्ष मैरूंड गांवों के लोगों के बचाव के लिए दूसरे जिलों से नाव का इंतजाम करता है। इस बीच बाढ़ से कई गांवों में जन और धन हानि हो जाती है। बीते वर्ष आयी भयावह बाढ़ में भी पांचों तहसीलों में पांच सौ से अधिक मैरूंड गांवों में बाहर से किराए पर मंगाकर नाव लगानी पड़ी, वहीं बाढ़ पीड़ितों को कहना है कि अगर जिले में ही नाव की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए तो बाहर से नाव, नाविक और राहतकर्मी नहीं मंगाने पड़ेंगे।

वर्ष 1998 में जब जिले का तीन चौथाई हिस्सा बाढ़ से डूब गया था और एक हजार से अधिक गांव मैरूंड हो गए थे, तब बचाव कार्य के लिए 348 नावें लगाई गईं थीं। इनमें अधिकांश नावें फैजाबाद समेत अन्य जिलों से मंगाई गईं थीं। इस बाढ़ में 52 लोगों और 481 पशुओं की मौत समेत भारी धनहानि भी हुई थी। स्थानीय प्रशासन तब भी नहीं चेता और हर वर्ष बाढ़ की त्रासदी झेल रहे मैरूंड गांव के लोगों को बचाने के लिए बाहर से नाव मंगाने की सतत प्रक्रिया जारी है। वर्ष 2017 में आई बाढ़ के दौरान भी फैजाबाद, वाराणसी, प्रयागराज व संतकबीर नगर जिले से नावें मंगाई गई थीं। अब बीते वर्ष 2022 के सितंबर व अक्टूबर माह में आई बाढ़ पर नजर दौड़ाएं तो मैरूंड पांच से अधिक गांवों में बचाव कार्य के लिए 253 नावें और 45 मोटरबोट लगाई गईं थीं। इनमें डेढ़ सौ से अधिक नावें और सभी मोटरबोट बाहर से किराए पर मंगाई गई थीं। वह भी तब जब पूरा जिला बाढ़ से कराहने लगा था। जिले का 60 हजार हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ से डूबा हुआ था, बाढ़ से 19 लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित थे। बाढ़ बचाव के जानकार कहते है कि अगर बचाव के इंतजाम जिले में होते तो बाढ़ प्रभावित इस जिले के लोगों को बहुत राहत होती।

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जिले में 89 निजी नावों की रही उपलब्धता, कई क्षतिग्रस्त
जिले के सभी पांचों तहसीलों में 89 लोगों के पास निजी नावों की उपलब्धता है। वर्तमान में इनमें कई नावें क्षतिग्रस्त एवं जर्जर हो चुकी हैं। इनमें 15 छोटी, 39 मझोली और 35 बड़ी नावें हैं। जबकि नौगढ़ तहसील में 48, बांसी में 17, डुमरियागंज में 12, इटवा में चार और शोहरतगढ़ में आठ नाव की उपलब्धता है। जिले में बाढ़ की भयावहता बढ़ने पर इन नावों के अलावा अतिरिक्त नावें और मोटरबोट बाहर से मंगानी पड़ती हैं। जिनके दैनिक किराया के अतिरिक्त लाने और वापस भेजने का भी किराया प्रशासन को चुकाना पड़ता है।
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कम किराए पर जिले में मिलती है नाव
बाढ़ के समय जिले के निजी नावों को प्रशासन किराए पर नाव लेकर बचाव कार्य कराना है। जिसके एवज में उन्हें नाव का किराया और पारिश्रमिक भी दिया जाता है। प्रतिदिन एक छोटी नाव का किराया तीन सौ रुपये, मझोली नाव का किराया 350 रुपये और बड़ी नाव का किराया चार सौ रुपये प्रतिदिन देय होता है। साथ नाविक का भी प्रतिदिन की मजदूरी 305 रुपये दिया जाता है। जबकि बाहर मंगाई जाने वाली नावों का किराया इससे डेढ़ गुना बढ़ जाता है।

प्रशिक्षण प्राप्त आपदा मित्र हुए अनुपयोगी
सिद्धार्थनगर। आपदा के समय पीड़िताें को बचाने व उन्हें बचाव की जानकारी देने के लिए शासन ने जिले के तीन सौ आपदा मित्र व आपदा सखियों को एक वर्ष पूर्व 28 जून 2022 को 12 दिवसीय प्रशिक्षण लखनऊ में हुआ था। प्रशिक्षित आपदा मित्र व आपदा सखियों का कहना है कि जब से उन्हें प्रशिक्षित किया गया है तब से जिला प्रशासन द्वारा उन्हें कोई भी काम नहीं दिया गया है। जबकि पिछले वर्ष जिला भीषण बाढ़ से प्रभावित रहा है। इन आपदा मित्रों को लोगों को बाढ़, अग्निकांड, भूकंप आदि आपदाओं में कार्य करना था। आपदा मित्रों ने बताया कि बचाव संबंधी काम न मिलने के कारण कई आपदा मित्र दूसरे कार्य में लगे है।
पहले जिला प्रशासन बचाव संबंधी काम देता था लेकिन जब से प्रशिक्षण प्राप्त करके आए हैं तब से प्रशासन कोई काम नहीं दे रहा है।
– श्यामदेव यादव, मास्टर ट्रेनर बढ़नी

जिला प्रशासन व विभाग द्वारा कोई काम न मिलने से रोजी-रोटी का संकट आ गया है। प्राइवेट स्कूल में पढ़ा कर परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं।

महेंद्र मिश्र, आपदा मित्र बांसी

पहले आपदा विभाग के साथ-साथ दूसरे विभाग भी काम दे देते थे। पूर्व में आपदा बचाव कार्य करते रहे हैं। काम न मिलने के कारण कपड़ा सिल रहा हूं।

सुनील कुमार, डुमरियागंज

पहले विभाग 500 रुपये प्रतिदिन का मानदेय देकर बचाव कार्य करवाता था, अब कोई पूछ भी नहीं रहा है। सब्जी बेचकर परिवार को पाल रहा हूं। – दुर्गा प्रसाद, आपदा मित्र, नौगढ़
प्रशासन बचाव की पूर्व तैयारी कर चुका है, जिले में उपलब्ध नावों को दुरुस्त करने के साथ ही बाढ़ समय में अतिरिक्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए फैजाबाद से नाव मंगाने का अनुबंध किया गया है। साथ ही पीड़ितों में वितरण के लिए राहत सामग्री एवं भूसा आदि का टेंडर किया जा चुका है।
उमाशंकर, एडीएम

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