सिद्धार्थनगर। माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज दलालों को अड्डा बन चुका है। ओपीडी से लेकर इमरजेंसी और लैब तक इनकी पैठ है, जो किसी न किसी तरह से मरीजों को फंसाकर उनसे धनउगाही कर रहे हैं। इसमें अस्पताल के कुछ कर्मचारियों की भी साठगांठ है। डॉक्टरों के केबिन में अनजान चेहरे बैठते हैं। इनमें से कोई मरीजों को जांच कराने की सलाह देते हुए दिखता है, कोई दवा की पर्ची थमाते हुए तो कोई पर्चा लेकर मरीजों को बुलाते हुए। अस्पताल में कोई ड्रेस कोड लागू न होने से इन बाहरियों को भी स्वास्थ्यकर्मी समझकर मरीज इनके झांसे में आ जाते हैं और इनकी सलाह मानने लगते हैं। इसी का फायदा उठाकर ये लोग मरीजों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। डॉक्टर के कक्ष में बैठे लोगों के बारे में पूछने पर न तो वे ही इन लोगों के बारे में बता पाते हैं और न ही अस्पताल प्रशासन। ऐसे में दलाली का धंधा चल रहा है।
जिला अस्पताल के माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज में तब्दील होने के बाद यहां मरीजों को भारी भीड़ लग रही है। मेडिकल कॉलेज होने के नाते जिले के हर कोने से मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। ओपीडी में जहां कम से कम प्रतिदिन एक हजार मरीज पहुंच रहे हैं। तो वहीं, इमरजेंसी में यह आकड़ा 24 घंटे मेें 50 के करीब पहुंच जाता है। मेडिकल कॉलेज बनने के बाद सुविधाएं तो बढ़ीं, लेकिन उसके साथ-साथ मरीजों का शोषण भी बढ़ गया है। ओपीडी से लेकर इमरजेंसी और लैब तक दलालों की गहरी पैठ बन चुकी है जो डॉक्टर के केबिन में बैठकर मरीजों का शोषण कर रहे हैं। यह बात शनिवार और सोमवार को अमर उजाला की पड़ताल में सामने आई।
सोमवार को दोपहर 12 बजे ओपीडी में मरीजों की भीड़ थी। इनके बीच हर चिकित्सक के कक्ष में दो-तीन अनजान चेहरे बैठे हुए मिले। जो लगभग हर दिन दिखते हैं। इनमें से कोई पर्ची पर नाम पुकार करता है तो कोई चिकित्सक के लिखने के बाद पर्ची लेकर किसी मेडिकल स्टोर पर जाने के लिए कहता है। वहीं कुछ तो ऐसे हैं जो अस्पताल में होने वाली मुफ्त जांच के लिए रुपये वसूल लेते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर कुछ स्वास्थ्य कर्मियों ने बताया कि यह पूरा धंधा चिकित्सकों की शह पर चल रहा है।
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चिकित्सक की फटकार के बाद दी जांच रिपोर्ट
एक सप्ताह पहले मेडिकल कॉलेज के डायलिसिस वार्ड में एक वृद्ध मरीज लेकर पहुंचा था। चिकित्सक ने उसे ब्लड जांच के लिए भेजा था। करीब पांच घंटे बाद वह लौटा तो डॉक्टर ने रिपोर्ट मांगी। इसके बाद वृद्ध के आंख में आंसू आ गए और बोला साहब यहीं कर्मी बताकर एक लोग ले गए। जांच के लिए दो सौ रुपये भी ले लिए। लेकिन रिपोर्ट नहीं मिला। डॉक्टर ढूंढते हुए आरोपी के पास पहुंचे। फटकार लगाई, इसके बाद वृद्ध को उनके रुपये वापस मिले और जांच रिपोर्ट दी गई।
बाहर ले जाने से रोका तो स्टाफ नर्स को दी धमकी
तीन माह पहले अस्पताल में तैनात एक आउटसोर्स कर्मी एक मरीज को इमरजेंसी से निजी अस्पताल में लेकर जाने लगा। इस बात का विरोध जब स्टाफ नर्स ने किया तो उसे धमकी देने लगा। इसके बाद उसने पुलिस को सूचना दी थी। लेकिन समझा-बुझाकर स्वास्थ्यकर्मियों ने मामले को दबा दिया था।
कौन है कर्मचारी, किसी को नहीं है जानकारी
जिला अस्पताल में तैनात कुछ स्वास्थ्यकर्मियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अधिकांश आउट सोर्स कर्मी इस कार्य में लिप्त हैं। वे लेकर इमरजेंसी, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और बाहर मेडिकल स्टोर संचालकों के संपर्क में हैं। अस्पताल के अंदर जांच के लिए स्टाफ बताकर मरीजों की जल्दी से जांच करवा देते हैं। इसके लिए उनसे रुपये लेते हैं। इसके साथ ही दवा बाहर से लाकर देने का भी कार्य करते हैं। यह इसलिए सफल हो जा रहे हैं कि कोई ड्रेस में नहीं रहता है। कौन कर्मचारी और कौन दलाल इसकी जांच नहीं होती है। जिससे दलाल और इनका धंधा चल रहा है।
हर से दिन से 200 से अधिक लोग होते हैं इनका शिकार
सूत्रों के अनुसार हर दलाल का प्रतिदिन का लक्ष्य है। वह पांच से 10 मरीज को फंसाता है। दवा जांच मिलाकर एक हजार रुपये एक दिन का टारगेट है। इतना कमाने के बाद ही वह दम लेता है। यहां 20 से अधिक दलाल काम कर रहे हैं। ऐसे में 200 से अधिक मरीज इनके झांसे में आकर ठगी का शिकार हो रहे हैं।
पकड़े जाने के बाद भी नहीं दी जाती है तहरीर
दलालों के मेडिकल कॉलेज में दखल बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि मेडिकल कॉलेज प्रशासन पकड़े जाने के बाद कार्रवाई के लिए पुलिस को तहरीर नहीं देता है। पूर्व में पुलिस कई बार छापा मार चुकी है। दलाल पकड़कर थाने तक जा चुके हैं। लेकिन शाम तक तहरीर न मिलने के कारण पुलिस उन्हें छोड़ने को विवश हो जाती है। जिसकी नतीजा है कि दलालों के हौसले बुलंद हैं और इनकी तादाद बढ़ रही है।