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Siddharthnagar News: चाचा! इहां समय से डॉक्टर मिलिहें न दवाई, हम तोहके अच्छा अस्पताल ले चलब…

सिद्धार्थनगर। माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज में सस्ते इलाज की उम्मीद लिए पहुंचने वाले मरीजों की जेब काटने वाले दलालों की पूरी फौज काम कर रही है। यहां आने वाले मरीजों को बाहर से दवाएं तो खरीदवाई ही जा रही हैं। कुछ स्वास्थ्यकर्मी डॉक्टरों के देखने से पहले ही मरीजों को गंभीर बीमारी बताकर निजी अस्पताल भेजवा दे रहे हैं। इस धंधे में निजी एबुलेंस वालों की अहम भूमिका है। ये मरीजों को गुमराह करके जहां मोटा किराया वसूलते हैं वहीं, निजी अस्पताल में इलाज में लगने वाले रुपयों में भी उनका कमीशन फिक्स रहता है।

एक सप्ताह पहले रात में एक वृद्ध को एक दलाल ऐसे ही गुमराह कर था। वृद्ध को दलाल कहने लगा कि लगा कि चाचा तोहार बेटवा ईंहा ठीक न हो गई। बीमारी गंभीर बा, इहां समय से डॉक्टर मिलिहें न दवाई, हम तोहके अच्छा अस्पताल ले चलब…। यह सुनने के बाद वृद्ध ने अपने बेटे को बुलाया। बेटा दलाल पर भड़क उठा। प्रशासन में शिकायत करने की बात कही तो दलाल भाग खड़ा हुआ। लेकिन न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो इनके झांसे में आ जा रहे हैं। दलालों के बढ़ते हुए दखल को रोकने के लिए मेडिकल कॉलेज प्रशासन गंभीर नहीं है, जिससे मरीजों का शोषण जारी है।

माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में 24 घंटे में 30-50 मरीज तक पहुंचते हैं। इसमें मरीजों में सर्वाधिक हादसे के शिकार वाले होते हैं। इसके बाद हार्ट संबंधित और अन्य बीमारी से ग्रसित मरीज होते हैं। तत्काल सर्जरी की व्यवस्था न होने के कारण गंभीर मरीजों को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ता है। लेकिन इसमें गोरखपुर मेडिकल कॉलेज से जाने से पहले गुमराह करके निजी अस्पतालों में भेजवा दिए जाते हैं। इसमें निजी एंबुलेंस कर्मियों को रोल अहम होता है। इनके साथ ही कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी मिले होते हैं। जो इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने में उनकी मदद करते हैं। इनकी निजी अस्पताल से साठगांठ रहती है, जहां से मरीज के दवा में जितना रुपये खर्च होता है, उसी हिसाब से उनका हिस्सा बन जाता है। मरीजों के साथ हो रहे इस खेल से विभागीय जिम्मेदार अनजान बने हैं। और मरीजों का शोषण हो रहा है।

हादसे वाले मरीजों को बनाते हैं शिकार
निजी एंबुलेंस वालों की नजर हादसे वाले मरीजों पर अधिक रहती है। मरीज के आने के बाद यह इमरजेंसी वार्ड में मंडराते रहते हैं। जैसे ही डॉक्टर कहते हैं कि गोरखपुर ले जाओ, यहां पर इलाज संभव नहीं है। फट से उनकी पीछे लग जाते हैं। अब मरीज के परिजनों को तो तत्काल इलाज की पड़ी रहती है। यह मरीजों से कहते हैं कि गोरखपुर जाने में तीन घंटे लग जाएंगे। ऐसे में पहुंचने से पहले कुछ भी हो सकता है। इनके सुर में सुर इलाज में लगे कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी मिला देते हैं। इसमें बाद तीमारदार घबराकर उनकेे बताए हुए स्थान पर ले जाने के लिए तैयार हो जाता है। फिर क्या, जिस अस्पताल पर सेटिंग वहां मरीजों को पहुंचा दिया जाता है।


निजी वाले ने दो दिन में ले लिए 50 हजार
नगर निवासी रमेश को 15 दिन पहले सीने में तेज दर्द उठा। परिवार के लोग माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज में ले गए। जहां कुछ समय चले इलाज के बाद चिकित्सक ने हालत गंभीर बताकर गोरखपुर ले जाने की सलाह दी। परिवार के लोग ले जाने के बारे में सोच रहे थे कि एक दलाल ने निजी अस्पताल को बताया और कहा कि वहां पर बेहतर इलाज हो जाएगा। हो सकता है ले जाते समय और दिक्कत बढ़ जाए। निजी अस्पताल वाले ने दो दिन में 50 हजार रुपये ले लिए। इसके बाद विवश होकर मरीज को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज जाना पड़ा। जहां इलाज के बाद वह स्वस्थ हो गए।

लखनऊ के बजाय पहुंचा दिया निजी अस्पताल में
मार्च में खेसरहा थाना क्षेत्र का निवासी एक युवक हादसे का शिकार हो गया था। मेडिकल कॉलेज लाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद लखनऊ मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया गया। इसके बाद निजी एंबुलेंस वालों ने मरीज को घेर लिया। लखनऊ ले जाने के लिए 12 हजार रुपये की डिमांड करने लगे। मरीज के पास समय और रुपया दोनों रात में नहीं था। उसे एक निजी अस्पताल में पहुंच दिए। जहां 12 घंटे इलाज का 17 हजार रुपये देना पड़ा। इसके बाद भी लखनऊ लेकर गए।

डिप्टी सीएम के आदेश को नहीं मानते जिम्मेदार
प्रदेश में निजी एंबुलेंस वालों की अस्पतालों में बढ़ते दखल को देखते हुए दो माह पहले डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने डीएम, सीएमओ को पत्र जारी करते हुए निर्देश दिया था। कहा कि था निजी एंबुलेंस सरकारी अस्पताल के बाउंड्री के अंदर किसी भी हाल में खड़ी नहीं होनी चाहिए। अभियान चलाकर कार्रवाई की जाए। लेकिन आदेश आज तक पालन नहीं हुआ। इमरजेंसी वार्ड के सामने निजी एंबुलेंस 24 घंटे खड़ी रहती है। दलाल मरीजों को गुमराह करके निजी अस्पताल में ले जाते हैं।

दलालों ने पुलिस कर्मियों से कर ली साठगांठ
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एके झा ने छह माह पहले जिलाधिकारी संजीव रंजन व पुलिस अधीक्षक अमित कुमार आनंद को पत्र लिखकर अस्पताल में निजी एंबुलेंस वालों को हटवाने की सिफारिश की थी। पुलिस अधीक्षक ने पुलिस की ड्यूटी लगाने की बात कहीं थी, लेकिन दो-चार दिन बाद भी दलालों ने पुलिस से भी साठगांठ कर ली और अब उन्हें हटाने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में आने वाले पुलिस कर्मियों के साथ दलालों की खूब वार्ता होती है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि दलाल इनसे भी साठगांठ हो गया है। कारण लोग एक दूसरे के साथ हमेशा बैठते नजर आते हैं। अब इतनी अच्छी दोस्ती हो गई है तो कार्रवाई की क्या उम्मीद कर सकते हैं। इस मामले में प्राचार्य डॉ. एके झा ने कहा कि निजी एंबुलेंस वालों को हटाने के लिए पुलिस को पत्र लिखा था, लेकिन पुलिस वाले उन्हें नहीं हटा रहे हैं।


यह है नियम
सरकारी एंबुलेंस सेवा में 108 नंबर एंबुलेंस सेवा गर्भवती महिलाओं के लिए है। इसमें अगर महिला की स्थित गंभीर भी है, तब भी उसे पहले नजदीक के सीएचसी पर पहुंचाना है। जबकि उसकी हालत पहले से खराब है और वहां इलाज संभव भी नहीं है। यह जानते हुए भी नियम का पालन करने के लिए सीएचसी ले जाएंगे। वहां रेफर करने के बाद जिला अस्पताल लाते हैं। इसी प्रकार हादसे में भी होता है। पहले नजदीकी अस्पताल फिर जिला अस्पताल पहुंचाया जाता है। वहीं, जिला अस्पताल पर इलाज के बाद हालत गंभीर होते हुए भी चिकित्सक यह जानते हैं कि गोरखपुर में इलाज संभव नहीं है। इसके बाद भी वह गोरखपुर के लिए ही रेफर बनाते हैं। कारण 102 नंबर की सेवा सीधे लखनऊ नहीं ले सकती है। उसके केवल गोरखपुर तक जाने का नियम है। ऐसे में कई बार मरीज इधर-उधर के चक्कर में दम तोड़ देता है।

नियम के फेर में बिचौलियों की चांदी
माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज से मरीज के लखनऊ रेफर होने पर बिचौलियों की चांदी हो जाती है। कारण 102 की सेवा गोरखपुर से आगे जाती नहीं है। ऐसे में यह लोग मरीजों को गुमराह करके निजी अस्पताल में ले जाते हैं। इसके साथ ही मोटा रकम लेकर लाचार मरीज को लखनऊ तक ले जाते हैं।

जिले में चलती है इतनी एंबुलेंस, फिर भी मरीजों का शोषण
जनपद में 108 सेवा की 29 एंबुलेंस चलती है। जबकि 102 सेवा की 30 एंबुलेंस चलती है। यह सेवा तात्कालिक तौर पर मरीजोंं को प्राथमिक उपचार के लिए नजदीकी अस्पताल पर ले जाते हैं। इसके अगर हालत गंभीर है तो जिला अस्पताल और गोरखपुर मेडिकल कॉलेज तक ले जाते हैं। इसी प्रकार एएलएस की चार एंबुलेंस है। जो केवल गंभीर मरीजों को ले जाने के लिए है। यह गोरखपुर और लखनऊ तक मरीजों को लेकर जाती है। लेकिन संख्या कम होने के कारण कई बार समय गाड़ी नहीं मिलती है। ऐसे में मरीजों को परेशानी होती है।

वर्जन
मेडिकल कॉलेज में दलालों की साठगांठ तोड़ा जाएगा। बाउंड्री से मिट्टी हटाई जाएगी ताकि दलाली अड्डा दूर हो जाए। अस्पताल परिसर में निजी एंबुलेंस वालों को हटाया जाएगा।
डॉ. ललित कुमार मिश्रा, एसडीएम

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